ArticleChinaGeneralHealthLatestLucknow

Pandemic (Covid-19) की यह लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है



This battle of Pandemic (Covid-19) is not over yet....

उत्तरप्रदेश/लखनऊ : पहले चरण में वैश्विक महामारी (Pandemic) कोरोना वायरस संक्रमण (Covid-19) के चलते 22 मार्च 2020 को सम्पूर्ण भारत वर्ष में सरकार को लॉकडाउन लगाना पड़ा। लेकिन वर्ष 2020 के अंत तक पहुँचते हुए लगा मानो हमने कोरोना पर जीत हासिल कर ली है। वहीं हमसे चूक हुई और उस गलती ने देश भर में हाहाकार मचा दिया। महामारी की इस दूसरी लहर ने न जाने कितने ही परिवारों को उजाड़ दिया। देखते ही देखते देश भर के वीरान पड़े शमशान और क़ब्रिस्तान में मानो हलचल मच गयी हो। हर तरफ़ महामारी के चलते सिर्फ मौत का तांडव चल रहा था। साँसे थम गयी थीं जिस ऑक्सीजन को हम बर्बाद करने में लगे हैं आज प्रकृति ने हमें उसी ऑक्सीजन के महत्व का एहसास दिला दिया।

Also Read

 

 

कोरोना नाम के इस वायरस ने हमें अपनों से ही जुदा कर दिया

हर तरफ एक ना दिखने वाले कोरोना नाम के इस वायरस ने हमें अपनों से ही जुदा कर दिया तो कहीं मानवता नाम के शब्द को भी शर्मसार कर दिया। कुछ अवसरवादियों ने तो मानवता को शर्मसार करते हुए कालाबाज़ारी का खेल भी शुरू कर दिया। कहीं ऑक्सीजन के नाम पर तो कहीं जीवन रक्षक दवाओं (Remdesivir) की कालाबाज़ारी के रूप में मानव रुपी भेड़ियों ने मानवता को शर्मसार किया, और तो और कई जगह तो धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर भी पीछे नहीं रहे। जम कर मरीज़ों के परिजनों के अपनों के प्रति प्रेम का फ़ायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

Vivekananda Polyclinic & Institute Of Medical Sciences ...
Vivekanand Polyclinic & Institute Of Medical Sciences ...

हृदय विदारक एवं रौंगटे खड़े कर देने वाला मंज़र

उदाहरण के तौर पर एक हृदय विदारक एवं रौंगटे खड़े कर देने वाला मंज़र सामने आया !!! बात है लखनऊ के एक महत्वपूर्ण थाने के पुलिस इंस्पेक्टर की जिन्होंने अपने कोरोना पॉज़िटिव भाई को बचाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया। यहाँ तक कि अपनी जमा पूँजी से लेकर पत्नी के ज़ेवर तक नहीं छोड़े।

हम बात कर रहे हैं लखनऊ के एक प्रसिद्ध हॉस्पिटल की। लखनऊ में एक ट्रस्ट रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम द्वारा संचालित प्रसिद्ध हॉस्पिटल (Vivekanand Polyclinic & Institute of Medical Sciences) विवेकानंद पालीक्लिनिक & इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ की। जहां पर भर्ती एक कोरोना संक्रमित मरीज़ के प्रति डॉक्टर के आचरण का एक उदाहरण सामने आया। जिसमें हॉस्पिटल में कार्यरत डॉक्टर के हाथ पैर जोड़ कर लखनऊ के एक महत्वपूर्ण थाने के पुलिस इंस्पेक्टर ने अपने भाई की ज़िन्दगी को बचाने के लिए हर सम्भव प्रयत्न किये। जिसके बावजूद वह अपने सगे भाई की ज़िन्दगी को बचाने में हार गए और उनके भाई को नाकाम रहे प्रशासनिक सिस्टम ने या फिर कहें कि उस डॉक्टर के राक्षस रुपी व्यवहार ने मौत के काल का ग्रास बना दिया।

Also Read



डॉक्टर के राक्षसी आचरण से पुलिस इंस्पेक्टर भी हताश और बेबस हो गए

इंस्पेक्टर ने GNN चैनल को अपनी बेबसी और लाचारी को बताते हुए कहा कि उनके भाई को जिसका ऑक्सीजन लेवल 55(SPo2) था उसको बचाने के लिए मरीज़ के प्रति उस डॉक्टर के राक्षस रुपी आचरण को बयान किया तो मानो दिल बाहर निकलने को आ गया। उस डॉक्टर के राक्षसी आचरण से इंस्पेक्टर भी हताश और बेबस हो गए। पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनी आप बीती बयान करते हुए बताया कि "उस डॉक्टर ने घृणित कार्य करते हुए मेरे भाई जिसका ऑक्सीजन लेवल 55 (SPo2) हो उस मरीज़ के लिए कहा कि अपने भाई को यहाँ से ले जाओ यह मरने वाला है, वरना इसका (मरीज़ का) ऑक्सीजन निकाल कर मैं ICU वार्ड के बाहर कर दूंगा और मेडिको लीगल (Medico Legal) भी नहीं बनाऊंगा।

"शायद भगवान को यही मंज़ूर था।"

उस वक़्त मैंने अपने आप को हताशा एवं बेबसी का शिकार न बनाते हुए हौंसला रख कर अपने भाई को विवेकानद हॉस्पिटल से 1200 मीटर दूर एक नर्सिंग होम, जिसने आश्वस्त किया कि आप मरीज़ को ले आएं जिससे उस वक़्त उम्मीद की एक किरण जागी कि मेरा भाई बच सकता है। जब मैं अपने कोरोना संक्रमित भाई को उस नर्सिंग होम ले जाने के लिए हॉस्पिटल के ऑक्सीजन मास्क को निकाल कर किसी तरह एम्बुलेंस के ऑक्सीजन मास्क को लगाने के लिए अपने भाई को व्हील चेयर पर लेकर भागा कि तभी एम्बुलेंस के ड्राइवर ने 15,000/-रुपये की मांग की। मरता क्या न करता !! आखिर भाई की जान का सवाल था। किसी तरह उसको पैसा देकर अपने भाई को नर्सिंग होम लेकर पहुंचा तो वहाँ भी ऑक्सीजन की कमी का रोना रोते हुए प्रताड़ित किया गया। तब भी हार नहीं मानते हुए मैंने रात भर में 15 ऑक्सीजन सिलिंडर इकठ्ठा करके नर्सिंग होम को सुबह तक मोहय्या कराये। लेकिन अफ़सोस उसके बावजूद भी अपने भाई को बचाने में असफल रहा। शायद भगवान को यही मंज़ूर था।"



ईश्वर ही इन लोगों का भला करे

यह तो एक घटना थीं इस तरह की ना जाने कितनी घटनाएं हुई हैं। कहीं कहीं पर तो डॉक्टरों का हैवानियत वाला चेहरा भी सामने आया है। कोरोना के मरीज़ बताकर उनके कई अंग (Organs) को निकाल लिया गया। ऐसे वीभत्स रूप भी देखने को मिले जिससे किसी का भी दिल दहल सकता है। इन घटनाओं से वाक़ई यह एहसास तो हुआ की मानवता के नाम पर इस माहामारी में भेड़िये रुपी मानवों को अवसर प्राप्त हुआ और लोगों ने खूब पैसा भी बनाया। चाहे वह कालाबाज़ारी करने वाले हों या फ़ायदा उठाने वाले भगवान रुपी चोला पहनने वाले डॉक्टर। ईश्वर ही इन लोगों का भला करे। इस तरह के न जाने कितने प्रभावित लोग जोकि संक्रमण के चलते हॉस्पिटल में हो रही कालाबाज़ारी और अनियमित्ताओं का शिकार हुए हैं। इसको नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

Also Read

महामारी की यह लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है

वैश्विक महामारी में हमने सरकारी तंत्र को भी जी भर के कोसा लेकिन कहीं न कहीं हम सब की भी इसमें गलती रही। हमने भी अपनी ज़िम्मेदारियों को नहीं निभाया। अगर सरकारों ने गलती की है तो इस माहामारी के दौर में हमने भी बहुत गलतियां की हैं। अब भी समय है अगर हम समय रहते नहीं चेते तो आने वाले समय में हमें और भी भयानक परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

लेकिन महामारी की यह लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है। अभी हमें और सजग रहने की ज़रूरत है। सरकारों को भी जनता के स्वास्थय को लेकर अभी बहुत काम करने ज़रूरत है। क्योंकि विश्व में आज भी इतनी उन्नति और विकास के बावजूद हमारा देश स्वास्थय प्रणाली में बहुत पीछे है।



ब्लैक फंगस (Black Fungus) और वाइट फंगस (White Fungus) नाम के संक्रमण भी पैर पसार रहे हैं

देश में फ़ैले इस कोरोना संक्रमण के नए मामलों में गिरावट देखी जा रही है तो वहीँ ब्लैक फंगस (Black Fungus) और वाइट फंगस (White Fungus) नाम के संक्रमण भी पैर पसार रहे हैं। ख़ासकर उन मरीज़ों में जोकि कोरोना के संक्रमण से ठीक हो चुके हैं या फ़िर (Diabetic) शुगर के मरीज़ और जिन्होंने हाल ही में सर्जरी (Surgery) कराई हो और हॉस्पिटल में लम्बे समय तक भर्ती रहे हों। लेकिन देश ने हाल ही में वो दौर भी देखा जब रोज 4 लाख से ज़्यादा मरीज़ मिल रहे थे। यही कारण रहा कि मई को इस महामारी (Pandemic) का सबसे घातक महीना माना जा रहा है। महज़ 21 दिनों में ही देश में 70 लाख से ज़्यादा नए मरीज़ो की पहचान हुई है। मौत के लिहाज़ से भी मई के आंकड़े डराने वाले हैं। पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर (Second Wave) ने काफ़ी ज़्यादा क़हर बरपाया है।

Also Read

Written By

Abid Ali Khan (Editor)

GNN (G News Networks)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *