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लोकतंत्र में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का हनन

लोकतंत्र(Democracy)

हमारे भारत देश में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र(Democracy) है। सन 1947 की ऐतिहासिक आज़ादी के बाद हमारा भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया। जिससे जनता को इसके बाद भारत में वोट देने और अपने नेताओं का सही चुनाव करने व् एक अच्छी सरकार चुनने का अधिकार मिल गया। हालाँकि लोकतंत्र एक सरकार की ही प्रणाली है, जो कि हमारी जनता को अपना वोट देने और अपनी मनपसंद सरकार का गठन करने की अनुमति प्रदान करती है।

भारत पर मुग़लों से मौर्यों तक के कई शासकों ने शासन किया। उनमें से प्रत्येक के पास लोगों को शासित करने की अपनी अलग कार्यशैली थी। 1947 में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया था। उस समय के भारत के लोग, जिन्होंने अंग्रेजों के द्वारा बहुत अत्याचारों का सामना किया था। पहली बार वोट करने का और अपनी सरकार का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त हुआ था।

भारतीय लोकतंत्र अपने नागरिकों को पांच लोकतांत्रिक सिद्धांतों जैसे–समाजवाद, सम्प्रभुत्ता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक गणराज्य, लोकतंत्र के आधार पर जाति, धर्म, रंग, लिंग और पंथ आदि को नज़र-अंदाज करते हुये अपनी पसंद से वोट देने की अनुमति देता है।

आज हम देख रहे हैं, कि चुनावों की शैली ही बदल चुकी है। आज चुनावों में लोकतांत्रिक सिंद्धान्तों का हनन करते हुए जाति, धर्म या फिर किसी धार्मिक मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ा जाता है। सरकारें बन जाती है, और उसके बाद शुरू होता है नया खेल। अब सरकारें जो दिखाना चाहती हैं, वही मीडिया चैनलों और सोशल मीडिया व अन्य साधनों द्वारा जनता को दिखाया जाता है। दिखाया जाने वाला तथ्य सच है या झूठ इससे किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। आज जनता भी अंधविश्वासी हो चुकी है, वह हक़ीक़त से परे रहना चाहती है।

देश में राजनीति का स्तर धीरे धीरे गिरता जा रहा है। राजनेता अपनी कुर्सी और उसकी ताक़त का खुल कर फ़ायदा उठाते देखे जा सकते हैं।

आर्थिक मामले में आंकड़ों के हिसाब से देश की आर्थिक स्तिथि दयनीय हो चुकी है। आर्थिक इतिहासकार ‘एंगस मैडिसन’ ने बताया था कि ‘पहली सदी से लेकर दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी’। आज हम 21वीं सदी में क़दम रख चुके हैं, कहा जाता है कि सदियां गुजरने के साथ साथ विकास में भी तेज़ी आती है। पर यह क्या आज 21वीं सदी में देश और पिछड़ गया।

2020 में फैली वैश्विक महामारी COVID-19 के बाद से FICCI के सर्वे में बताया गया कि “देश के सर्वाधिक प्रभावित उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों में 2020-21 के दौरान क्रमश: 10 प्रतिशत और 9.2 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका है।” सर्वे में यह भी कहा गया कि औद्योगिक क्षेत्र का पुनरुद्धार गति पकड़ रहा है, लेकिन वृद्धि अभी व्यापक नहीं है।

जहाँ से यह महामारी ने पैर पसारे उस चीन जैसे देश में COVID-19 महामारी के चलते चीन की अर्थव्यवस्था में 2020 की पहली तिमाही के दौरान 6.8 प्रतिशत की गिरावट हुई थी। इसके बाद अगली तिमाही में चीन ने 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर ली।

फिच रेटिंग्स ने 14 जनवरी 2021 को कहा कि अगले वित्त वर्ष (2021-22) में भारतीय अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत की अच्छी वृद्धि दर्ज करेगी, लेकिन उसके बाद 2022-23 से 2025-26 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सुस्त पड़कर 6.5 प्रतिशत के आसपास रहेगी।

एक दौर में प्रभावशाली निजी विमान सेवा कंपनी जेट एयरवेज़ आज बंद हो चुकी है। एयर इंडिया बड़े घाटे में चल रही है। किसी दौर में टेलीकॉम सेक्टर की पहचान रही बीएसएनल आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। आज कई महकमों व हवाईअड्डों का निजीकरण हो चुका है और कई के निजीकरण होने की सम्भावना है।

क्या निजीकरण होने से देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आ जाएगा या फिर देश एक बार फिर से गुलामी की ओर बढ़ रहा है।

भारतीय बैंकिंग व्यवस्था अभी एनपीए की त्रासदी को झेल रही है। वर्तमान में कुल एनपीए 9,49,279 करोड़ रुपये का है। एनपीए का 50% हिस्सा तो महज देश के 150 बड़े पूंजीपतियों की वजह से हुआ है। हां, यह कहना तथ्यात्मक रूप से सही होगा कि पिछले 4 सालों 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के एनपीए में कमी आई है लेकिन, यह भी याद रखना होगा कि पिछले 5 सालों में मौजूदा सरकार द्वारा बड़े पूंजीपतियों के ₹5,55,603 करोड़ के लोन माफ किये जा चुके हैं।

इतनी बड़ी वैश्विक महामारी के दौर के बाद कितने लोगों का रोज़गार ख़त्म हो गया, नौकरियां चली गयीं, जो लोग अपने घरों से दूर होकर रोज़गार के लिए दूसरे प्रदेशों में जाकर रोज़गार चलाते थे वह आज अपने घरों को लौट गए। नौकरियां बची नहीं, जिनकी हैं वह भी समझौता करके नौकरियां कर रहे हैं।

लोकसभा के 2020 मानसून सत्र में किसानों के हितों में तीन बिल (विधेयक) पारित हुए हैं। कृषि से जुड़े इन तीन अहम विधेयकों पर राजनीति गरमा गई। पंजाब से लेकर दिल्ली तक कई दल इसका विरोध कर रहे हैं। इन विधेयकों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया है। सरकार द्वारा पास किये गए तीनों कृषि सुधार विधेयक को वापस लेने को लेकर किसानों द्वारा आंदोलन छेड़ दिया गया।

विवाद का कारण बने तीनों कृषि सुधार विधेयकों को लेकर किसानों का आंदोलन आज तूल पकड़ गया जिसमें किसानों के द्वारा देश के 26 जनवरी को भारत वासियों के द्वारा मनाये जाने वाले महापर्व पर देश कि राजधानी दिल्ली में ट्रेक्टर परेड का आह्वाहन किया गया था। जिसकी अनुमति पहले तो पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं दी गयी थी, लेकिन किसानों के काफी विरोध के बाद पुलिस प्रशासन द्वारा अनुमति दे दी गयी।

जिसके बाद किसानों द्वारा ट्रेक्टर परेड निकाले जाने को लेकर पुलिस और किसानों में विवाद इतना बढ़ा कि पुलिस को लाठी चार्ज एवं आंसू गैस के गोले तक चलाने पड़ गए। जिसमें खबर यह भी है कि एक किसान जोकि ट्रेक्टर के तेज़ी से भगाये जाने पर पलटने से उसकी मौत हो गयी है।

ANI की तरफ से twitter पर शेयर की गयी क्लिप को देख कर बेहद दुःख होता है। यह क्या हो रहा है देश में? यही हमारा भारत है जिसकी कल्पना गांधी जी ने देश को ब्रिटिश सरकार के हाथों से आज़ादी के बाद की थी।

किसानो द्वारा लालक़िले के उस स्थान पर पहुंचकर किसान दल का झंडा भी लहराया गया, जहाँ पर देश के प्रधानमंत्री 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) को भारत के तिरंगे झंडे को फहराते हैं। जिसके उपरान्त किसान दलों द्वारा कहा गया कि यह कार्य किसानों के द्वारा न करके कुछ शरारती एवं उपद्रवी तत्वों के द्वारा किया गया है।

अब इसके पीछे क्या राजनीति या षड़यंत्र है? यह समझने वाली बात है। दो माह से किसानों द्वारा किये जा रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन को किसकी नज़र लग गयी। जिसके बाद यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन इतना हिंसक हो गया। जबकि किसानो पर पिछले दिनों प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा लाठी चार्ज और वाटर कैनन द्वारा पानी फेंक कर रोकने की कोशिश की गयी थी। तब यही किसान उग्र नहीं हुए। फिर अब वही किसान इतने हिंसक कैसे हो गए?

फ़िल्हाल बहुत बड़ा प्रश्न है। इसे समझने की ज़रूरत है, इसमें कोई बड़ी साज़िश भी हो सकती है। पर किसकी?

जिसे हमें आपको समझना होगा। हालाँकि, किसानों के द्वारा चल रहे इस आंदोलन को सरकार क्यों इतना बढ़ा रही है, किसानों को क्यों नहीं अभी तक पास हुए कृषि सुधार विधेयकों के बारे विश्वसनीयता जगा पायी है। यह सरकार की विफ़लता है या राजनीति ?

यह देश हम सबका है इसलिए आज हम सबको अभी से सम्भलना होगा और जागरूक होना पड़ेगा। क्या यही लोकतंत्र है? लोकतंत्र को बचाना होगा, आँखों से ज़्यादा अब दिमाग़ का इस्तेमाल करना होगा।

Abid Ali Khan

आबिद अली ख़ान(सम्पादक)

G NEWS Networks (GNN)

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