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लोकतन्त्र के चार स्तम्भों मे से कमज़ोर होता एक स्तम्भ

लोकतन्त्र के चार स्तम्भ हैं:-

1-न्यायपालिका
2-कार्यपालिका
3-विधायका
4-मीडिया

उपरोक्त में से तीन स्तम्भ तो पहले से ही बेहद खस्ता हालत में हैं, अब चौथा स्तम्भ यानी मीडिया भी इनके साथ प्रतिस्पर्धा में शामिल हो चुका है और ज़ोरदार टक्कर देते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। अगर यह इसी रफ्तार से बढ़ते रहा तो जल्द ही पहला स्तम्भ बन सकता है।
न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायका तो पहले से ही भ्रष्टाचार और अनैतिकता के दलदल में डूबे हुए है, इन पर निगाह रखने वाला चौथा स्तम्भ मीडिया, जिसका काम जनहित की सूचनायें दिखाना और लोकव्यवस्था का निर्माण कर समाज को एक सूत्र में बांधे रखना ही ज़िम्मेदारी है। वह आज किस हालात में है यह किसी से छुपा नही है।
कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायका लोक तंत्र के इन तीन स्तम्भ पर नज़र रखने और लोगों को इनकी बातों व हरकतों से निष्पक्ष तरीके से रूबुरू कराने के लिये ही चौथा स्तम्भ यानी पत्रकारिता मौजूद है, पर अब इस चौथे स्तम्भ पर भी ज़बरदस्त खतरा मन्डराने लगा है इसकी कई वजह हो सकती हैं पर जो खास वजह निकल कर सामने आयी है वो इस प्रकार हैं कि पत्रकारिता अब निष्पक्ष न हो कर व्यापार बन गयी है, बड़े मीडिया हब के कुछ चैनल हकीकत में दलाल Media बन कर रह गये हैं जो सिर्फ़ सत्ता पक्ष के पालतू बनकर चमचागिरी का काम कर रहे हैं। अपनी TRP के लिए किसी भी व्यक्ति की छवि को ख़राब करने में इन्हें सिर्फ एक ब्रेकिंग न्यूज़ की ही ज़रूरत पड़ती है, सच्चाई से कोसों दूर किसी भी गुंडे व बदमाश वाली प्रवर्ती के व्यक्ति को वंचित और कमजोर की उपाधि देकर कब यह रातों रात हीरो बना दे कहा नही जा सकता।
सनसनीखेज खबरों के चक्कर मे ये इस हद तक गिर चुके हैं, कि फ़ेक ख़बर चलाने से भी परहेज नहीं करते है। अगर पुलिस किसी को शक के आधार पर गिरफ्तार भी कर लेती है, तो ये उसे पहले ही आतंकी, बलात्कारी, देशद्रोही और खूनी व हत्यारा तक घोषित कर देते हैं। कोर्ट से पहले ये अपना फैसला भी सुना देते हैं, फिर बाद में माफी की कोई गुंजाइश भी नही होती क्योंकि माफ़ी शब्द का इनकी निष्पक्ष पत्रकारिता में कोई वजूद नही है। कालेधन को पकड़वाने के लिए 2000 के नोटो में चिप तक लगवा देने वाले मीडिया का सामाजिक मुद्दों से कोई सरोकार नही है। हार्दिक पटेल और कन्हैया कुमार व ओवैसी जैसे लोगो को रातों-रात ऐसा चमकाया जाता है कि लोगो की आंखे ही चौंधिया गई हैं।
पैसे लेकर गाली खाने वाले लोगो को ठेके पर लाकर, राष्ट्रीय चैनल पर बिठाने वाला मीडिया आज पूरी तरह से बिकाऊ मीडिया बन चुका है। आपको जो भी झूठी ख़बरें या अफ़वाह लोगो के बीच फैलानी हो तो उसके लिए इन्हें पैसा खिलाइए और अपने हिसाब से ख़बरे दिखाइए, जितना ज्यादा पैसा, उतनी ही बडी ब्रेकिंग। अगर कोई चोर, बेईमान, और भ्रष्ट जल्दी से अमीर बनने की चाह रखता हो तो एक न्यूज़ चैनल खोल दे और फिर किसी राजनैतिक पार्टी की दलाली करना शुरू कर दे, उनके झूठ को सच की तरह दिखाते रहिये और पैसा कमाते रहिये।
आज का मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नही बल्कि भ्रष्टतंत्र का चौथा स्तम्भ बन चुका है। इनकी हकीकत का पता लगाने के लिए आपको कुछ भी करने की जरूरत नही है, बल्कि आधे घंटे किसी भी न्यूज़ चैनल के सामने बैठ जाइए तो आपको स्वयं ही अंदाजा हो जाएगा कि लोकतंत्र का ये चौथा स्तम्भ उपरोक्त तीनो स्तम्भो में से किस स्तम्भ के पास गिरवी पड़ा है।
अगर आपको लगता है कि कोई भी स्तम्भ ख़तरे में है, तो यक़ीनन चारो ही स्तम्भ बहुत ही फल-फूल रहे हैं। अगर खतरे में कोई है, तो वह है इस देश का आम नागरिक, जो इन चारों स्तम्भो के बीच पिसता जा है।
प्रिन्ट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में नामी अख़बार के शायद ही कुछ लोग बचे हैं जिनका ज़मीर ज़िंदा है। उसके बाद छोटे पोर्टल, चैनल व दैनिक और साप्ताहिक Newspaper व मैगज़ीन के तमाम पत्रकार एवं कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हुये फ़र्ज़ी पत्रकारों ने इस चौथे स्तम्भ की नींव इतनी कमज़ोर कर दी है कि आज बड़ी संख्या में लोग इस चौथे स्तम्भ को गिरी हुई नज़र से देखने लगे हैं।
इसी के साथ दूसरी बात ये भी है कि निष्पक्ष पत्रकारिता करने में पत्रकारों को बगैर किसी सुरक्षा के दोहरा रिस्क भी लेकर काम करना पड़ता है। जनता के सामने सच्चाई लाने के लिये पत्रकार असामाजिक तत्वों के दुश्मन बन जाते हैं, जिनके खिलाफ वे निर्भय होकर ख़बर लिखते व चलाते हैं।
उसी का नतीज़ा है पत्रकार विक्रम जोशी का कत्ल, सहारा के पत्रकार रतन सिंह की हत्या और इसके अलावा कितने पत्रकारों तथा वरिष्ठ पत्रकारों के साथ आये दिन कई तरह की निन्दनीय घटनाओं को होते देखा जा सकता है।
ये बात सही है कि कुछ भ्रष्ट मीडिया चैनलों के कृत्य की वजह से ही पत्रकारिता की छवि धूमिल हुई है, लेकिन इसी के साथ ये भी सच है भ्रष्ट लोग कहाँ नहीं हैं, कौन सा ऐसा विभाग है जो भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं है।
मीडिया का असल काम तो यह है कि भ्रष्टाचार को निष्पक्षता से समाज व सरकार के सामने लाना। जिसमे देश के कई पत्रकारों को निष्पक्ष होकर कार्य करने पर अंजाम भी भुगतने पड़े हैं।
उसके बाद सरकार या पुलिस प्रशासन से पत्रकारों को सुरक्षा ना मिले और कोई तरजीह भी न मिले तो ये एक तरह से पत्रकारों के साथ ना इन्साफ़ी है।
ज़रूरत है लोकतन्त्र के इस चौथे स्तम्भ को भी अहमियत देने की ताकि समाज में लोगों के मन में भरोसा बना रहे, कि कोई तो है उनकी आवाज़ को बुलंद करने वाला। इसलिये भी के समाज को चलाने के लिये न्याय पालिका, कार्यपालिका और विधायका की ही तरह चौथा स्तम्भ पत्रकारिता भी बहुत ज़रूरी है ताकि समाजिक ढान्चे का संतुलन बना रहे, और जनता को हर ख़बर मिलती रहे। मीडिया का निष्पक्ष होना बेहद ज़रूरी है।

आबिद अली खान
सम्पादक
(GNN)

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