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Lucknow: ‘Hotspot’ of illegal construction and mining, ‘Silent Partnership’ of administration and media

लखनऊ: अवैध निर्माण और खनन (Illegal construction and mining) का 'एलीट हब,' प्रशासन और मीडिया की "खामोश साझेदारी"

लखनऊ, उत्तर प्रदेश: नवाबों के शहर लखनऊ का नया परिचय अब "अवैध निर्माण और खनन का गढ़" (Illegal construction and mining) हो चुका है। कानून और नियम-कायदों की किताबें यहां केवल सरकारी फाइलों में शोभा बढ़ा रही हैं। चौक थाना क्षेत्र के यहियागंज इलाके और लखनऊ विकास प्राधिकरण (लविप्रा) के जोन-7 में चल रही अवैध खुदाई इसका ज्वलंत उदाहरण है।

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बीते हादसे, जिनसे कुछ नहीं सीखा गया

9 सितंबर, 2013: यहियागंज इलाके में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में शॉर्ट सर्किट से भीषण आग लगी। दमकल की गाड़ियां तंग गलियों में फंस गईं, और फायर पाइप को घरेलू पाइप से जोड़कर आग बुझाई गई।

एक और मामला 29 Dec 2018 यहियागंज के धागा गोदाम में भीषण आग, तपिश से फटे खिड़कियों के शीशे

29 दिसंबर, 2018: यहियागंज के धागा गोदाम में आग ने फिर वही कहानी दोहराई। दमकल की गाड़ियां घटनास्थल से 300 मीटर दूर खड़ी रहीं, और पाइप बिछाकर पानी पहुंचाना पड़ा।

लोअर बेसमेंट के नीचे एक और खुदाई?

(illegal construction and mining) यहियागंज में एक दबंग बिल्डर, बिना किसी अनुमति के, लोअर बेसमेंट के नीचे एक और बेसमेंट खोद रहा है। मानो लखनऊ का इन्फ्रास्ट्रक्चर किसी सुपरह्यूमन इंजीनियरिंग का नतीजा हो, जो इन अवैध खुदाइयों का सामना कर सकता है। प्रशासन से अनुमति? भारतीय राष्ट्रीय भवन संहिता (National Building Code) के मानक ऐसा लगता है जैसे यह शब्द अब केवल सरकारी फाइलों में बचा है।

NBC के कुछ प्रावधान, जो ठेंगा दिखाए जा रहे हैं:

बेसमेंट की ऊंचाई कम से कम 2.5 मीटर होनी चाहिए।

वेंटिलेशन अनिवार्य है।

किसी भी खुदाई से पहले जिलाधिकारी की अनुमति जरूरी है।

प्रशासन और खनन विभाग की चुप्पी: 'हम नहीं सुधरेंगे!'

इस अवैध खुदाई को देखकर लगता है कि प्रशासन और खनन विभाग "चुप रहने के गोल्डन फॉर्मूला" पर काम कर रहे हैं। रात के अंधेरे में यह अवैध कार्य बिना किसी डर के जारी है, और प्रशासन को शायद यह विश्वास है कि "जब तक हादसा नहीं होगा, तब तक कार्रवाई क्यों करें?"

 

खनन विभाग और प्रशासन की चुप्पी इस "गोल्डन फार्मूला" पर आधारित है

"जब तक कोई बड़ा हादसा न हो, तब तक कार्रवाई क्यों करें?"
रात के अंधेरे में अवैध खुदाई निर्बाध रूप से चल रही है। स्थानीय बाजार में सुरक्षा के लिए खतरा हर दिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन अधिकारियों को शायद यह सब नजर ही नहीं आता।

 

पत्रकार भी बने बिल्डरों के "मिशनरी पार्टनर"

मामला यहीं खत्म नहीं होता, अब तो कुछ पत्रकार भी बिल्डरों के फ्री के बॉडीगार्ड बन गए हैं। उनके लेख अब निष्पक्षता के बजाय बिल्डरों की चरण वंदना से भरे रहते हैं। उनकी पैनी कलम अब बिल्डरों की तारीफों की स्याही से लथपथ होने के साथ उन्हीं के मुंह की कालिख बन चुकी है। ऐसे में इनके द्वारा निष्पक्ष पत्रकारों को धमकाया जा रहा है, ताकि सच्चाई की आवाज दबाई जा सके।

संकीर्ण बाजार और बड़ी दुर्घटनाओं का इंतजार

अवैध खुदाई से क्षेत्रीय संरचनाएं खतरे में हैं। कई मंजिला इमारतों के नीचे खुदाई से न केवल स्थानीय निवासियों की सुरक्षा दांव पर है, बल्कि संकीर्ण बाजार में हादसों का खतरा हर वक्त मंडरा रहा है। प्रशासन की चुप्पी इन खतरों को और बढ़ा रही है।

प्रशासन की "साइलेंट पार्टनरशिप"

यह घटना प्रशासन की "साइलेंट पार्टनरशिप" का एक और उदाहरण है। बिल्डर आराम से अपने अवैध मंसूबों को पूरा कर रहे हैं, और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। स्थानीय लोगों और समाजसेवियों का कहना है कि प्रशासन को फौरन इस पर सख्त कदम उठाने चाहिए।

क्या होगा अब?

1. प्रशासन "एक्शन मोड" में आएगा या बिल्डरों के इशारों पर नाचता रहेगा?

2. निष्पक्ष पत्रकारों की आवाज बुलंद होगी या वह भी इस साजिश का हिस्सा बन जाएंगे?

3. लखनऊ में बड़े हादसे का इंतजार किया जाएगा या इससे पहले ठोस कदम उठाए जाएंगे?

सरकार और प्रशासन को इस मामले पर जागना होगा, वरना जनता का विश्वास इन संस्थानों से पूरी तरह उठ जाएगा।

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