Ayodhya:आज से ठीक एक माह बाद विराजेंगे रामलला, पहली बार एक साथ पढ़िए राममंदिर की हर विशेषता – Ayodhya Ram Mandir: Know All The Issues About Ram Temple In Ayodhya.
भगवान श्रीराम आ रहे हैं। उनके लिए अयोध्या का आंगन सज रहा है। उनके घर का नए सिरे से निर्माण हो रहा है। देश-विदेश के वास्तुविद, शीर्षस्थ कंपनियों के इंजीनियर और दूसरी विधाओं के विशेषज्ञ इसको आकार दे रहे हैं। सामान्य मंदिरों से इतर गहरी नींव, मजबूत आधार के साथ यह केवल पत्थरों से बना होगा। महज कुछ साल तक चलने वाली सीमेंट जैसे दूसरे पदार्थों का रंचमात्र प्रयोग नहीं हो रहा। रामलला का घर भूकंपरोधी होगा। एक हजार साल से ज्यादा समय तक अक्षुण्ण रहेगा। उत्तर और मध्य भारत में प्रचलित मंदिरों की नागर शैली में सरयू के किनारे बन रहा राममंदिर भौतिक विशिष्टताओं की खान है। हर किसी के मन में राममंदिर की विशेषताएं जानने का कौतूहल है। तो आइए, आपको राममंदिर की एक-एक विशेषता से परिचय कराते हैं। राममंदिर को लेकर अब तक क्या कुछ हुआ, और क्या कुछ होने होने वाला है- पढ़िए ये रिपोर्ट।
तीन तल, पांच गुंबद, 161 फीट ऊंचाई
राममंदिर पूर्व मुखी है। मंदिर में कुल तीन तल हैं। कुल ऊंचाई 161 फीट है। प्रत्येक तल की ऊंचाई 20 फीट होगी। पूरब और पश्चिम दिशा में मंदिर 350 फीट लंबा होगा। उत्तर-दक्षिण दिशा में 235 फीट चौड़ा होगा। मंदिर में पांच गुंबद यानी मंडप होंगे, जिसमें से अब तक तीन मंडप तैयार हो चुके हैं। चौथे मंडप का काम चल रहा है।
3500 मजदूर दे रहे मंदिर को आकार
राममंदिर निर्माण में 3500 कारीगर व मजदूर लगाए गए हैं। ये मजदूर राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, हैदराबाद आदि राज्यों के हैं। राममंदिर निर्माण का काम रात में भी होता है। इसके लिए दो शिफ्ट में आठ-आठ घंटे मजदूरों की ड्यूटी लगाई जाती है। हैदराबाद के कारीगर रामसेवकपुरम में राममंदिर के दरवाजों का निर्माण कर रहे हैं।
कई तकनीकी एजेंसियां कर रहीं निगरानी
राममंदिर निर्माण में देश के कई नामी तकनीकी एजेंसियों की मदद ली जा रही है। आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रो वीएस राजू के अलावा आईआईटी सूरत व गुवाहाटी के निदेशकों के साथ सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की के विशेषज्ञों समेत एलएंडटी और टाटा कंसल्टिंग के इंजीनियर मंदिर निर्माण में लगे हैं। सीबीआरआई हैदराबाद व आईआईटी मुंबई की टीम का भी योगदान है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था इसरो राम के मस्तक पर सूर्य की पहली किरण से तिलक कराने में मदद कर रही है।
सागौन की लकड़ी से बन रहे दरवाजे
राममंदिर की खिड़कियां, चौखट, दरवाजे महाराष्ट्र के चंद्रपुर की सागौन की लकड़ी से बन रहे हैं। राममंदिर में कुल 42 दरवाजे लगाए जा रहे हैं। ये सभी दरवाजे सागौन की लकड़ी से बन रहे हैं। विशेषज्ञों की राय पर इस लकड़ी का चयन किया गया है। सागौन की लकड़ी में छह से सात सौ साल तक दीमक नहीं लगता। अब तक दिल्ली की सेंट्रल विस्टा परियोजना व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की इमारत, सतारा सैनिक स्कूल और डीवाई पाटिल स्पोर्ट्स स्टेडियम सहित कई प्रमुख परियोजनाओं में महाराष्ट्र की सागौन की लकड़ी का उपयोग किया गया है।
तीन प्रकार के पत्थरों का इस्तेमाल
मंदिर निर्माण मुख्य रूप से राजस्थान के मिर्जापुर और बंसीपहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर और नक्काशीदार संगमरमर से हुआ। गुलाबी पत्थरों की चमक सैकड़ों साल तक रहती है। इनकी आयु भी लंबी होती है। मंंदिर की नींव में 17,000 ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। प्रत्येक का वजन दो टन है। ग्रेनाइट पत्थर ठोस होता है। पानी के रिसाव को सोख लेता है। इसलिए नींव की मजबूती के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है।
21 लाख क्यूबिक फीट पत्थर लग चुके
राममंदिर निर्माण में अब तक 21 लाख क्यूबिक फीट पत्थर का इस्तेमाल हो चुका है। राममंदिर की नींव में 1.30 लाख क्यूबिक मीटर इंजीनियरिंग फिल, राफ्ट में 9500 क्यूबिक मीटर कांपैक्ट कंक्रीट और प्लिंथ में 6.16 लाख क्यूबिक फीट ग्रेनाइट, मंदिर की ऊपरी संरचना में 4.74 लाख क्यूबिक फीट बंसीपहाड़पुर पत्थर, 14,132 क्यूबिक फीट नक्काशीदार मकराना संगमरमर लगाया गया है।
7.5 स्केल की तीव्रता के भूकंप का नहीं होगा असर
आईआईटी चेन्नई के परामर्श के बाद राममंदिर की नींव 50 फीट गहरी रखी है। इसे बनाने में सात महीने लगे थे। नींव में कुल 47 परतें बिछाई गई हैं। ट्रस्ट का कहना है कि मंदिर को कम से कम एक हजार साल तक किसी प्रकार के मरम्मत की आवश्यकता नहीं होगी। विशेषज्ञों की सलाह पर मंदिर के निर्माण में स्टील और साधारण सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। दावा है कि 7.5 तीव्रता के भूकंप का असर राममंदिर पर नहीं होगा। बाढ़ से बचाने के लिए मंदिर के चारों दिशाओं में 50 फीट गहरी सुरक्षा दीवार भी बनाई जा रही है।
नींव में अर्पित है करोड़ों भक्तों की आस्था
राममंदिर की नींव करोड़ों हिंदुओं की आस्था भी अर्पित है। राममंदिर के फैसले के बाद देश की सभी पवित्र नदियों का जल व मिट्टी हजारों कलशों में अयोध्या पहुंची थी। भक्तों की इच्छा थी कि उनकी आस्था मंदिर की नींव में समर्पित की जाए। राममंदिर ट्रस्ट ने जल व मिट्टी को मंदिर की नींव में समर्पित कराया है। वहीं 1989 में हुए शिलादान में मिलीं करीब 2़ 75 लाख रामनाम लिखीं ईंटें भी नींव में समाहित की गई हैं।
तीन स्थानों पर बन रही रामलला की अचल मूर्ति
– रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए तीन स्थानों पर गुप्त रूप से तीन मूर्तियां बनाई जा रही हैं। कर्नाटक के गणेश भट्ट, व राजस्थान के सत्यनारायण पांडेय व अरुण योगीराज मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं। तीन मूर्तियों में से बाल सुलभ कोमलता जिस मूर्ति में सर्वाधिक झलकेगी, उसका चयन किया जाएगा। उसी मूर्ति को पीएम मोदी 22 जनवरी को गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठित करेंगे। राजस्थान से सफेद संगमरमर व कर्नाटक से एक भूरे रंग का पत्थर लाया गया, जिसे कृष्ण शिला कहते हैं। इन दोनों पत्थरों पर मूर्ति निर्माण शुरू हुआ। सभी प्रकार के पत्थरों का परीक्षण नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स में किया गया। इसके बाद ही मूर्तिकारों ने काम शुरू किया था।
51 इंच की होगी रामलला की अचल मूर्ति
रामलला की अचल मूर्ति 51 इंच की होगी। कमल के आसन पर रामलला विराजेंगे। हाथ में धनुष-बाण होगा। आसन सहित प्रत्येक मूर्ति की ऊंचाई लगभग सात फीट होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि भक्तों को 25 फीट की दूरी से दर्शन करने के लिए यह आवश्यक है।
सूर्य की किरणें करेंगी रामलला का अभिषेक
राममंदिर का एक अन्य आकर्षण यह है कि हर रामनवमी को सूर्य की किरणें रामलला का अभिषेक करेंगी। सूर्य के प्रकाश को रामलला के माथे पर प्रतिबंधित करने के लिए एक उपकरण भी गर्भगृह में लगाया जा चुका है। इस पर इसरो के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं।