किन्नर किसके नाम का लगाते हैं सिंदूर? जबकि शादी के एक दिन बाद ही हो जाते हैं विधवा
आपने हिंदू धर्म में विवाहित स्त्रियों को अपने माथे पर सिंदूर लगाते हुए देखा होगा. ये विवाहित महिलाओं की पहचान होती है और वे इसे पति की लंबी उम्र से भी जोड़कर देखती हैं. ये तो मान्यता की बात है लेकिन हमारे ही समाज में मौजूद किन्नरों की सामान्य लोगों की तरह शादी नहीं होती है, तो आखिर वो किसके नाम का सिंदूर अपने माथे पर सजाते हैं?
किन्नरों का आखिर कौन पति होता है, जिसकी लंबी उम्र की दुआ करते हुए वो रोज़ाना माथे पर सिंदूर लगाकर ही बाहर निकलते हैं. ये सवाल आपके भी मन में कभी न कभी ज़रूर आया होगा, वो बात अलग ही हम ऐसे सवालों पर ज्यादा नहीं सोचते हैं. वैसे आज हम इस सवाल का जवाब आपको बताते हैं कि किन्नरों के जीवन में सिंदूर का क्या महत्व है और वे इसे बिना गैप किए रोज़ाना अपने माथे पर क्यों लगाते हैं.
एक दिन के लिए होती है शादी
किन्नर जब समूह में शामिल होते हैं, तो इससे पहले नाच-गाना, सामूहिक भोजन का आयोजन किया जाता है. आम लोगों की तरीके से ही किन्नर समाज भी वैवाहिक बंधुओं में बनते हैं लेकिन यहां पर खास बात यह होती है कि यह किन्नर विवाह तो करते हैं लेकिन यह विवाह किसी इंसान से नहीं होता. ये लोग अपने भगवान अरावन से करते हैं. इस दौरान दुल्हन बने किन्नर सोलह श्रृंगार करते हैं और मांग में सिंदूर भी भरा जाता है. ये किसी समारोह की तरह होता है, जहां मंगल गीत गाए जाते हैं और खुशियां मनाई जाती हैं.
विधवा होकर भी लगाते हैं सिंदूर
उनकी ये शादी सिर्फ एक दिन के लिए की जाती है. विवाह के अगले दिन ही दूल्हे यानि अरावन देवता की मृत्यु हो जाती है. इसकी वजह से विवाहित किन्नर को विधवा मान लिया जाता है और इस पर शोक भी मनाया जाता है. इस समारोह के बाद ही वो किन्नर जिस घराने में शामिल होते हैं, उसी के गुरु की लंबी उम्र के लिए वे सिंदूर लगाते हैं. शरद द्विवेदी की किताब किन्नर: अबूझ रहस्यमय जीवन में ये भी बताया गया है कि वे ताउम्र ऐसा करते हैं और अपने गुरु (जब तक वे जीवित रहते हैं) के नाम पर विवाहित बने रहते हैं. अपने परिवार से अलग होकर किन्नर परंपरा में शामिल होने के बाद उनके गुरु ही उनके लिए सबसे अहम होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 15, 2023, 06:50 IST