Explainer : अंतरिक्ष में जाने पर कमजोर हो जाते हैं एस्ट्रोनॉट्स, कई बीमारियां करती हैं हमला
House Well being: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त 2023 को चांद के दक्षिणी हिस्से में लैंड कर इतिहास रच दिया. भारत चांद के इस हिस्से में उतरने में सफल रहने वाला पहले देश बन गया. लेकिन, कई दशक पहले ही अमेरिका ने चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारकर ऐसा काम कर दिया था, जिसे अब तक कोई देश नहीं दोहरा पाया है. हालांकि, अंतरिक्ष यात्रियों का स्पेस ट्रैवल करना जारी है. यहां तक कि अंतरिक्ष में लगातार जारी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भी बनाया गया है. इस स्टेशन पर रहकर अंतरिक्ष यात्री लगातार शोध व अध्ययन में जुटे रहते हैं.
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन धरती की निचली कक्षा में बनाया गया सबसे बड़ा मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन है. इस परियोजना में अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा, रूस की रॉस्कॉस्मॉस, जापान की जैक्सा, यूरोप क ईएसए और कनाडा की सीएसए शामिल हैं. क्या आप जानते हैं कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के साथ ही बाकी सभी एस्ट्रोनॉट्स जब अंतरिक्ष में होते हैं तो उनके स्वास्थ्य पर कई तरह के उलटे प्रभाव पड़ते हैं. उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर पड़ जाती है. इसके अलावा उनको कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को झेलना पड़ता है. हालांकि, स्पेस में समय बिताने के बाद जब वे धरती पर लौटते हैं तो उनकी सेहत फिर से ठीक हो जाती है.
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एस्ट्रोनॉट्स के स्वास्थ्य पर क्या-क्या डालता है असर?
नए शोध के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्रा इंसानों के लिए एक मुश्किल अनुभव होता है. सबसे पहले कॉस्मिक विकिरण की बौछारों से एस्ट्रोनॉट्स का शरीर हिल जाती है. इसके बाद ज़ीरो ग्रैविटी शरीर में मौजूद तरल पदार्थों और इंसान के ब्लड प्रेशर में उथल-पुथल पैदा कर देता है. वहीं, ण्स्ट्रोनॉट्स को बहुत ही संकुचित यानी छोटी सी जगह में रहना पड़ा है. इससे उनके शरीर पर अलग ही तरह का पड़ता है. एस्ट्रोनॉट्स को लंबे मानसिक दबाव के दौर से भी गुजरना पड़ता है. इस दौरान इस तनाव को कम करने के लिए उनके आसपास कोई होता भी नहीं है. इसमें दोस्तों और परिवार से दूर रहना भी उनके मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर डालता है.
कॉस्मिक रेडिएशन की बौछारों से एस्ट्रोनॉट्स का शरीर बुरी तरह से हिल जाता है. (फाइल फोटो)
क्या है स्पेस हेल्थ, अब तक शोध में क्या पता चला?
सबसे ज्यादा सेहतमंद लोगों को ही अंतरिक्ष यात्रा पर भेजा जाता है. उन्हें अंतरिक्ष के हालात में सहज रहने के लिए कई साल का सख्त और कड़ा प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इसके बाद भी जब वे अंतरिक्ष में पहुंचते हैं तो उनकी सेहत जवाब दे देती है. अंतरिक्ष में उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याओं को झेलना पड़ता है. अब इन स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान होने के बाद चिकित्सा क्षेत्र में एक नई शाखा शुरू कर दी गई है. इसे स्पेस हेल्थ कहा जा रहा है. स्पेस हेल्थ रिसर्च के जरिये पता चल है कि अंतरिक्ष की कम और लंबी अवधि की उड़ानों से शरीर के हर तंत्र पर असर पड़ता है. इसमें हृदय, रक्त संचार, पाचन, मांसपेशियां, हड्डियों से जुड़े तंत्र और रोगप्रतिरोधी प्रणाली तक शामिल हैं.
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कितना मुश्किल है अंतरिक्ष में स्वास्थ्य की देखभाल?
नए शोध की रिपोर्ट कहती है कि अंतरिक्ष में ज़ीरो ग्रैविटी के कारण स्वास्थ्य की देखभाल करना बहुत ही मुश्किल काम बन जाता है. मान लीजिए कि अगर किसी एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष उड़ान के दौरान हार्ट अटैक पड़ जाए तो छाती पर दबाव देने में मददगार किसी ठोस और कड़ी जमीन के बिना सीपीआर देना नामुमकिन है. धरती पर सीपीआर फर्श पर लिटाकर दिया जाता है. वहीं, अंतरिक्ष में हर चीज तैरती है तो दबाव देकर हृदय की धड़कनें लौटाना करीब-करीब नामुमकिन हो जाता है. डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक, कोलोन मेडिकल कॉलेज के स्पेस हेल्थ रिसर्चर योखन हिंकेलबाइन का कहना है कि हर अंतरिक्ष यात्री के लिए स्पेस में सीपीआर देना बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है.
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स्पेस टूरिज्म बढ़ने पर स्पेस हेल्थ का क्या होगा रोल?
योखन कहते हैं कि आने वाले समय में अंतरिक्ष में स्वास्थ्य चिंताएं सिर्फ एस्ट्रोनॉट्स के लिए ही बड़ी चुनौती होंगी. वहीं, बदलते समय के साथ स्पेस टूरिज्म को बढ़ावा मिलने पर आम इंसान मोटा भुगतान कर अंतरिक्ष की नियमित यात्राओं की रफ्तार बढ़ाएंगे. ऐसे में अंतरिक्ष उड़ान के दौरान यात्रियों या पर्यटकों का स्वस्थ चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए दुनिया को स्पेस हेल्थ इंडस्ट्री की बहुत ज्यादा जरूरत होने लगेगी. हालांकि, अभी स्पेस हेल्थ सेक्टर का पूरा ध्यान पेशेवर अंतरिक्ष अभियानों पर ही है. ये अंतरिक्ष अभियान 6 से 12 महीने के होते हैं. लंबी अवधि के स्पेस मिशंस में एस्ट्रोनॉट्स को सबसे ज्यादा रोगप्रतिरोधक प्रणाली की कमजोरी का सामना करना पड़ता है.
अंतरिक्ष में पहुंचने पर लोगों के शरीर में पहले से चुपचाप बैठे वायरस सक्रिय हो जाते हैं. (फाइल फोटो)
क्या है ह्यूमन वायरोम, कैसे पैदा करता है दिक्कत?
कनाडा की ओटावा यूनिवर्सिटी के ओडेटे लानेइयुविले के मुताबिक, अंतरिक्ष में पहुंचने पर लोगों के शरीर में पहले से चुपचाप बैठे वायरस और ग्रंथियां सक्रिय हो जाते हैं. कुछ एस्ट्रोनॉट्स में त्वचा का संक्रमण भी उभर आता है. वह उदाहरण देते हुए कहते हैं कि चेचक वारिसेला-जोसटर वायरस से होती है. ज्यादातर लोग बचपन में चेचक से संक्रमित होते हैं. फिर इम्यूनिटी इसके संक्रमण को नियुत्रित कर लेती है. इसके बाद भी वारिसेला-जोसटर वायरस वायरोम के तौर पर चुपचाप शरीर में बैठा रहता है. बता दें कि वायरोम शरीर में मौजूद कई अच्छे और खराब वायरस का ग्रुप है. ये खामोशी से बैठे वायरस स्पेस में पैदा होने वाले तनाव के कारण फिर सक्रिय हो सकते हैं. अगर वारिसेला-जोस्टर वायरस सक्रिय होता है तो त्वचा रोग शिंगगल्स पैदा कर देता है.
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क्यों और कैसे सक्रिय हो जाते हैं खामोश वायरस?
लानेइयुविले का कहना है कि ऐसे संक्रमण ज्यादा समय के लिए नहीं होते हैं. उनके मुताबिक, एस्ट्रोनॉट्स के धरती पर लौटने के कुछ समय बाद ही स्पेस में हुए इंफेक्शंस अपने-आप ठीक हो जाते हैं. दरअसल, अंतरिक्ष यात्रियों की इम्यूनिटी चार से पांच हफ्ते के भीतर सामान्य तौर पर काम करना शुरू कर देती है. जून 2023 में प्रकाशित शोध के मुताबिक, लानेइयुविले जानना चाहते थे कि हरपीज जैसे वायरस अंतरिक्ष उड़ान के दौरान क्यों और कैसे सक्रिय हो जाते हैं. उनकी टीम ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर छह महीने तक अंतरिक्ष यात्रियों की रोग प्रतिरोधक प्रणाली में हुए बदलावों की जांच की. उन्होंने एस्ट्रोनॉट्स के इम्यून ट्रांस्क्रिप्टोम्स से मिले डाटा को जुटाया. बता दें कि ट्रांस्क्रिप्टोम इंसान के जीन्स में होने वाले बदलावों को दर्ज करता है.
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ट्रांस्क्रिप्टोम एनालिसिस में क्या निकले नतीजे?
जीन्स पर्यावरण के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया करते हैं. शरीर का अलग-अलग हालात में ढलना जीन्स पर ही निर्भर होता है. लानेइयुविले की टीम ने निर्धारित समय पर अंतरिक्ष यात्रियों के खून के नमूने लिए. तीन अभियान से पहले, चार स्पेस मिशन के दौरान और तीन यात्रा पूरी करने के बाद. खून के नमूनों के ट्रांस्क्रिप्टोम एनालिसिस में इम्यून सिस्टम से जुड़े जीन्स पर ध्यान दिया गया. इसमें डब्लूबीसी पर विशेष ध्यान दिया गया. टीम ने पाया कि छह महीने की अंतरिक्ष यात्रा के दौरान 297 जीन्स पर असर पड़ा था. इनमें से 100 प्रतिरोधक प्रतिक्रियाओं से जुड़े थे. शोध से पता चला कि अंतरिक्ष में जीन्स की प्रतिक्रिया बदल गई थीं. इनसे रोगप्रतिरोधक प्रणाली काफी सुस्त हो गई थी. इसी से शांत वायरसों को सक्रिय होने का मौका मिला.
एस्ट्रोनॉट्स के धरती पर लौटने के कुछ समय बाद ही स्पेस में हुए इंफेक्शंस अपने-आप ठीक हो जाते हैं. (फाइल फोटो)
इम्यूनिटी को कैसे सुस्त करती है अंतरिक्ष यात्रा?
लानेइयुविले के मुताबिक, शोधकर्ता नहीं जानते कि अंतरिक्ष यात्रा रोगप्रतिरोधक प्रणाली को कमजोर कैसे करती है. लेकिन, हमें ये पता है कि इसके पीछे कई कारण होते हैं. अंतरिक्ष का पर्यावरण इंसानी शरीर के लिए एकदम रूखा और सख्त है. अंतरिक्ष की ज़ीरो ग्रैविटी, कॉस्मिक रेडिएशन, तनाव और अलगाव इन कारणों में शामिल हैं. अध्ययन से पता चलता है कि एस्ट्रोनॉट्स की डब्लूबीसी ऐसी सभी तनाव वाली परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रियावादी होती हैं. लानेइयुविले को आशंका है कि माइक्रोग्रैविटी यानी शून्य गुरुत्व का अंतरिक्ष में मनुष्य की प्रतिरोध प्रणाली पर सबसे ज्यादा असर हो सकता है.
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FIRST PUBLISHED : August 28, 2023, 16:13 IST