इस ऐतिहासिक नगरी में हैं नाग-नागिन की 12 जोड़ी की प्रतिमाएं, जानिए नागपंचमी पूजा का महत्व
दुर्गेश सिंह राजपूत/नर्मदापुरम : इस साल नागपंचमी का त्योहार 21 अगस्त को मनाया जाएगा. मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम जिले में उज्जैन व ओमकारेश्वर महाकाल की तर्ज पर बने नागचंदेश्वर मंदिर के कपाट साल में एक बार ही खोले जाते है. लेकिन इस बार शहर में 2 मंदिरों के कपाट खोले जाएंगे. इस मंदिर की विशेषता है यहां स्थापित 12 प्रकार के नाग-नागिन जोड़ों की प्रतिमाएं, जिनकी नाग पंचमी पर पूजा की जाती है.
49 साल पुराने नर्मदे हर आश्रम चौरे गली में गुम्बद पर बने नागचंदेश्चर मंदिर में नाग देवता फन फैलाए भगवान शिव-पार्वती व परिवार की प्रतिमा स्थापित है. इसके साथ ही आसपास 12 नाग नागिन के जोड़ों को भी स्थापित किया गया है. मंदिर के संचालक ने बताया कि ये मंदिर उनके पिता प्रकाश चंद्र चौरे ने 49 साल पहले बनवाया था. इन सालों में मंदिर को केवल हमारे परिवार के द्वारा ही खोला जाता है.
नागपंचमी के दिन चढ़ेगा चोला
नागपंचमी के दिन नागचंदेश्वर भगवान का अभिषेक कर श्रृंगार चढ़ाया जाता है. उन्होंने बताया कि साल में एक बार पट खुलने पर आसपास के लोग अधिक संख्या में दर्शन करने पहुंचते है. पंडित चेतन चौरे ने बताया कि मुहुर्त के अनुसार अमृत, शुभ, लाभ इन मुहुर्त मेंं सुबह चार बजे मंदिर के कपाट को खोला जाएगा. सफाई कर सुबह सात बजे भगवान का अभिषेक कर सिंदुर,चोला चढ़ेगा. रात्रि 12 बजे तक पट खुले रहेगें.
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इस मंदिर में 12 जोड़े नागों के नाम जानिए
नागचंद्रेश्चर मंदिर में 12 नाग-नागिन के जोड़ो की प्रतिमाओं को बनाया गया है. मंदिर खुलते ही इन जोड़ो को स्नान कराकर यहां पूजन अर्चन कर सिंदूर चढ़ाया जाता है. यहां जरत्कारू(अनन्त), जगदुगौरी(वनसुकि), मनसा(शंखपाल), सिद्धयोगिनी(पद्म), बैष्णवी(कम्बल), नागभागिनी(ककौटक), शैवी(अश्वत्तर), नागेश्वरी(धतृराष्ट्र), जरत्कारूप्रिया(शेषनाग), आस्तीकमाती(कालिया), विशहारा(तक्षक), महाज्ञानयुक्ता(पिंगल) नागों की प्रतिमाएं हैं.
पूजन करने का महत्व
नाग-पूजन से पद्म-तक्षक जैसे नाग गण संतुष्ट होते हैं, तथा पूजन कर्ता को सात कुल (वंश) तक नाग-भय नहीं होता है. नाग पूजा से सांसारिक दु:खों से मुक्ति तथा विद्या, बुद्धि, बल एवं चातुर्य की प्राप्ति होती है. सर्प-दंश का भय तो समाप्त होता ही है, साथ ही जन्म-कुंडली में स्थित च्च्कालसर्प योगज्ज् की शान्ति भी होती है.
कैसे करे नांगपंचमी पूजा
नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है. इस दिन गृह-द्वार के दोनों तरफ गाय के गोबर से सर्पाकृति बनाकर अथवा सर्प का चित्र लगाकर उन्हें घी, दूध, जल अर्पित करना चाहिए. इसके पश्चात दही, दूर्वा, धूप, दीप एवं नीलकंठी, बेलपत्र और मदार-धतूरा के पुष्प से विधिवत पूजन करें. फिर नागदेव को धान का लावा, गेहूँ और दूध का भोग लगाना चाहिए.
क्यों मनाते हैं नागपंचमी
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि शापित महाराज परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति को समाप्त करने के संकल्प से नाग-यज्ञ किया, जिससे सभी जाति-प्रजाति के नाग भस्म होने लगे; किन्तु अत्यन्त अनुनय-विनय के कारण पद्म एवं तक्षक नामक नाग देवों को ऋषि अगस्त से अभयदान प्राप्त हो गया. अभयदान प्राप्त दोनों नागों से ऋषि ने यह वचन लिया कि श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जो भू-लोकवासी नाग का पूजन करेंगे, हे पद्म-तक्षक! तुम्हारे वंश में उत्पन्न कोई भी नाग उन्हें आघात नहीं करेगा. तब से इस पर्व की परम्परा प्रारम्भ हुई, जो वर्तमान तक अनवरत चलीआ रही है.
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FIRST PUBLISHED : August 19, 2023, 14:13 IST