Atal Bihari Vajpayee Demise Anniversary Atalji At all times stored India pleasure in overseas issues
हाइलाइट्स
अटल बिहारी वाजपेयी ने कई नाजुक मौकों पर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को चमकाया था.
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में सबसे पहले हिंदी में भाषण दिया था जिसकी बहुत तारीफ हुई थी.
कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग थलग करना उनकी ही नीति थी.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों में अगर पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद लोकप्रियता के शिखर को छूने वाले किसी का नाम प्रमुखता से आता है तो वह अटल बिहारी वाजपेयी का होगा. उनके नाम राजनीति में कई अटूट रिकॉर्ड दर्ज हैं. पंडित नेहरू के बाद वे देश के पहले प्रधानमंत्री थे जो लगातार दूसरी बार इस पद पर काबिज हुए थे. उनकी छवि ही ऐसी थी कि उनकी विरोधी पार्टी के नेता तक उनका लोहा मानते थे. वे हमेशा एक ओजस्वी और प्रभावी वक्ता रहे. वे देश के प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री और लंबे समय तक संसद में नेता प्रतिपक्ष भी रहे. लेकिन उन्होंने विदेश में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष हमेशा ही प्रभावशाली तरीके रख कर देश का मान बढ़ाया.
राजनीति की शिक्षा
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर के में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपोयी स्कूल में अध्यापक थे. उनकी शुरुआती शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में फिर हुई थी. उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (रानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) से हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में बीए, और कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की.
पत्रकारिता के बाद राजनीति में शुरुआत
छात्र जीवन से ही अटल जीने राजनीतिक विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिताओं आदि में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. 1939 अपने छात्र जीवन में ही वे स्वयंसेवक की भूमिका में आ गए थे. उन्होंने हिंदी न्यूज़ पेपर में संपादकका काम भी किया था. 1942 में उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी से उनकी मुलाकात हुई. उनके ही आग्रह पर अटल जी ने भारतीय जनसंघ पार्टी की सदस्यता ली थी जिसका गठन 1951 में हुआ था.
नेहरू को भी किया प्रभावित
उन्होंने 1957 में उत्तर प्रदेश जिले के बलरामपुर लोकसभा सीट से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता और फिर 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ संसदीय दल के नेता के तौर पर काम करते रहे. इस बीच 1968 से 1973 तक पार्टी के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी प्रभावित किया और सभी पर अपने विशिष्ठ भाषा शैली का प्रभाव छोड़ते रहे.
अटल बिहारी वाजपेयी ने हमेशा ही अपनी एक विनम्र छवि को बनाए रखा जिसका उन्हें विदेशी मंचों पर खूब फायदा मिला. (फाइल फोटो)
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी
अपने विनम्र और मिलनसारव्यक्तित्व के कारण उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा उनके मधुर सम्बन्ध रहे. 1975 में लगे आपातकाल का उन्होंने भी पुरजोर विरोध किया और जब 1977 में देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो, मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार में अटलजी ने विदेश मंत्री के तौर पर पूरे विश्व में भारत की शानदार छवि निर्मित की. विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने थे.
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प्रभावी विदेश नीति
इस दौर में अटल जी ने साबित किया था. वे विदेश नीति में कितने माहिर और प्रभावी राजनीतिज्ञ हैं. उन्होंने दुनिया के लोगों में भारत में आपातकाल के कारण देश की बिगड़ रही छवि को सुधारने का काम भी बखूबी किया. इसके बाद उन्होंने 1980 में अपने सहयोगी नेताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की और उसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने.
अटलजी ने कई बार कठिन हालात में देश का विदेशी मंचों पर प्रतिनिधित्व किया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
एक अलग तरह का प्रयास
1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक के पूर्वार्द्ध में राममंदिर के मुद्दे पर जब अटल जी की पार्टी की छवि कट्टर हिंदूवादी पार्टी के तौर पर बन रही थी तब अटल जी ने ही पार्टी पर कट्टरपंथ का तमगा हटाने का प्रयास किया वे हमेशा ही अपने तार्किक बयानों से विरोधियों को उनकी पार्टी की नाकारत्मक छवि बनाने का प्रयासों को नाकाम कर देते थे. फिर 1996 में जब उनकी 13 दिन की सरकार बनी तब लोकसभा में उनके भाषण से लोगों के मन में उनके प्रति सम्मान बहुत ज्यादा बढ़ गया. उसके बाद 13 महीने की सरकार में भी उनके काम भी बोलने लगे.
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1998 उनका ही कौशल था कि परमाणु परीक्षण के बाद बिगड़ी छवि के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत की पहल कर दुनिया को बताया कि भारत शांति के लिए कितना गंभीर है. कारगिल युद्ध में अटलजी की ही विदेश नीति थी कि वे दुनिया को यह समझाने में सफल रहे कि पाकिस्तान के साथ भारत युद्ध नहीं कर रहा है, बल्कि पाकिस्तान की घुसपैठ को नाकाम करने का प्रयास कर रहा है. यहीं पर पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर अकेला पड़ गया और साथ ही उसे हार का भी सामना करना पड़ा.
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FIRST PUBLISHED : August 16, 2023, 07:52 IST