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Achievements of Uttar Pradesh after 76 years of independence | महिला साक्षरता में 14 गुना बढ़े, सरहद सुरक्षा में सबसे ज्यादा जवान दिए; जहां पिछड़े वहां अब आगे होंगे


9 मिनट पहलेलेखक: देवांशु तिवारी / राजेश साहू

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15 अगस्त 1947…देश गुलामी की बेड़ियां उतारकर आजाद सुबह देख रहा था। युनाइटेड प्रोविंस यानी संयुक्त प्रांत अब उत्तर प्रदेश बन गया था। आजादी को लेकर चेहरे पर जितना उत्साह था। उससे कहीं ज्यादा चुनौतियां माथे पर नजर आ रही थीं। संसाधन नहीं थे…जो थे वह नाकाफी थे। सूबे की 80% जनता अशिक्षित थी। विकास क्रम में उसके साथ आगे बढ़ना किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं था। हार मान नहीं सकते थे। क्योंकि हमने आजादी ही जीत की शर्त पर ली थी।

हम जैसे-तैसे आगे बढ़े। 149 करोड़ रुपए का बजट जारी किया। स्कूल-कॉलेज बनाना शुरू किया। मिलें बनीं। जिले से जिलों को जोड़ने के लिए सड़कें बनाई। अस्पताल बनाए। विकास की पटरी पर उत्तर प्रदेश की जनता ऐसे दौड़ी कि सबकुछ बदल गया।

आज 76 साल बाद पलटकर देखते हैं, तो लगता है कि हम उस वक्त किसी दूसरी दुनिया में थे। आज स्वतंत्रता दिवस पर हम फिर पुराने पन्नों को पलटेंगे। वहां से यहां तक पहुंचने के क्रम को देखते हैं। साल-दर-साल सबकुछ कितना बदला। आइए बारी-बारी उसी रास्ते से गुजरते हैं…

आबादी बढ़ी तो इंतजाम भी बढ़ते गए

1951 में जनगणना हुई तो कुल जनसंख्या 6 करोड़ 32 लाख 19 हजार 672 थी। हर दशक यह संख्या बढ़ती गई। 1981-1991 दशक में हमारी जनसंख्या तेजी से बढ़ी। 11.08 करोड़ से हम 13.91 करोड़ पहुंच गए। 1991-2001 के दशक में इस संख्या में और इजाफा हुआ। 13.91 करोड़ से हम 16.61 करोड़ तक पहुंच गए। इस वक्त प्रदेश की जनसंख्या 23.15 करोड़ तक पहुंच गई है। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर हो रहे प्रचार का असर दिख रहा है।

साक्षरता दर में हम 16 गुना आगे बढ़े

देश आजाद हुआ तो यूपी में पढ़े-लिखे लोगों का आभाव था। 1951 में प्रदेश की साक्षरता दर 12% थी। यानी 100 में 88 लोग निरक्षर थे। महिलाओं में साक्षरता की स्थिति तो और खराब थी। 100 में सिर्फ 4 महिलाएं ही पढ़ी-लिखी थीं। वक्त के साथ चीजें बदलीं। 1991 से 2001 के बीच साक्षरता में रिकॉर्ड 15% का उछाल आया। 1991 में 26% महिलाएं शिक्षित थीं। 2001 में यह आंकड़ा 42% पहुंच गया। इस वक्त प्रदेश की 78 फीसदी जनता पढ़ी-लिखी हो गई है। प्रदेश का लक्ष्य 100% साक्षरता पर है।

गरीबी चुनौती थी…स्वीकार किया और दूर किया

देश आजाद हुआ तो सबसे बड़ी चुनौती गरीबी को कम करना था। 1973 में 57% आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। 2023 में यह 22% तक आ गया। हालांकि आज भी प्रदेश की एक बड़ी आबादी है जो गरीबी रेखा से नीचे है और सरकार द्वारा दिए जा रहे मुफ्त राशन पर अपना गुजर-बसर कर रही है।

4 हजार गुना बड़ा हो गया हमारा बजट

1951 में पहली बार यूपी का बजट जारी किया गया। उस वक्त 149 करोड़ रुपए ही थे। सरकार ने धीरे-धीरे जनहित में योजनाएं शुरू की। स्कूल-कॉलेज बनाए। हॉस्पिटल खोले। लोगों की जरूरत को सर्वोपरि रखा। 2023 में यूपी का बजट 6 लाख 90 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। वेलफेयर की तमाम योजनाएं आज लागू हैं।

जितने में 10 ग्राम सोना था अब एक लीटर पेट्रोल भी नहीं

आज एक लीटर पेट्रोल की जो कीमत है आजादी के वक्त उतने रुपए में 10 ग्राम सोना और एक किलो चांदी आ जाती थी। 2010 में 10 ग्राम सोने की कीमत 19 हजार रुपए थी। लेकिन आज 3 गुना का इजाफा हो गया। 60 हजार रुपए कीमत पहुंच गई। ठीक इसी तरह से चांदी के भाव भी बढ़े। 2004 में पहली बार चांदी 10 हजार रुपए प्रति किलो पहुंचा था। आज 70 हजार रुपए किलो से ज्यादा भाव बढ़ गए हैं।

हर जरूरी जगह पर हॉस्पिटल खड़े किए

आजादी के तुरंत बाद सबसे ज्यादा सुधार की जरूरत हेल्थ विभाग में थी। क्योंकि हर साल महामारी फैलती और बड़ी संख्या में लोग बिना इलाज के ही मर जाते थे। यूपी में आज 67 मेडिकल कॉलेज हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 3527 है। प्रदेश में गोरखपुर और रायबरेली के रूप में दो एम्स हो गए हैं। हालांकि डॉक्टरों की संख्या कम है। 19 हजार डॉक्टर होने चाहिए लेकिन 12 हजार ही हैं। एक मरीज पर करीब 19,962 लोग हैं।

पहले एक रुपए में 4 लीटर पेट्रोल मिलता था

देश जब आजाद हुआ तो यूपी में बहुत सड़कें नहीं थी। गाड़ियां नहीं थी। पेट्रोल का दाम 27 पैसे प्रति लीटर था। 1962 में इसकी कीमत 82 पैसे तक पहुंच गई। 2000 में इसकी कीमत 28 रुपए पहुंच गई। 2010 आते-आते पेट्रोल 50 रुपए पहुंच गया। इस वक्त पेट्रोल के दाम 96 रुपए लीटर हैं। पिछले साल इसकी कीमत 110 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गई थी।

मेट्रो, एक्सप्रेस-वे, एयरपोर्ट में हम नित आगे बढ़ रहे

यूपी आधुनिकता के साथ चला। उस वक्त लखनऊ और वाराणसी के रूप में दो एयरपोर्ट थे। जिनपर बहुत सीमित विमान ही उतरते थे। आज प्रदेश में 9 एयरपोर्ट हो गए। एक्सप्रेसवे की संख्या 13 पहुंच गई है। 5 शहरों में मेट्रो की लाइन बिछा दी। खास यह कि भारतीय सेना में उस वक्त 10 हजार से भी कम सैनिक थे। आज यह संख्या 2 लाख पार कर गई है। उस वक्त हमारे पास ग्रीन पार्क कानपुर के रूप में एक स्टेडियम था। आज 4 होने वाले हैं। नोएडा और वाराणसी में स्टेडियम निर्माणाधीन है। लखनऊ के इकाना स्टेडियम पर इस साल विश्वकप के 5 मैच खेले जाएंगे।

वो जरूरी चीजें जिसकी कीमत जानकर यकीन नहीं होता

आखिर में हमने यह ग्राफिक रखा है। कुछ चीजों के रेट ऐसे हैं जिस पर नई उम्र के लड़के भरोसा ही नहीं कर पाएंगे। उस वक्त 20 रुपए में साइकिल आ जाती थी। आज 7 हजार रुपए से ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। बहुत सारी चीजें ऐसी थी जो 1 रुपए से भी कम कीमत पर थी। आज बहुत महंगी हो गई। इन सबके बीच हमें यह भी पता होना चाहिए कि उस वक्त हमारे पास आज की तरह लोहे के सिक्के नहीं बल्कि चांदी के सिक्के हुआ करते थे। संसाधन बढ़े तो सिक्कों का रूप बदलता गया।

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