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भारतीय मीडिया का अस्तित्व ख़तरे में है….



Indian media is at risk.....

Indian Media is at risk.....

प्राचीन काल से ही दुनिया भर में भारत देश को हर क्षेत्र में परिपूर्ण माना जाता रहा है। जिससे भारत देश की ख्याति से दूसरे देश प्रतिस्पर्धा में भी रहे हैं। लेकिन इस मुक़ाबले में भारत देश हमेशा से ही आगे रहा है। लेकिन आज हमारे भारत देश को लगता है नज़र सी लग गयी है। आज हम खुद अपने देश को खोखला बनाने में लगे हैं। मानवता तो मानो ख़त्म ही हो गयी है। हमारा ध्येय क्या है ? हम किधर जा रहे हैं ? सभी बस दौड़ में है, हर कोई आगे निकलने की जुगाड़ में है। किसी को किसी की भी परवाह नहीं। इसी का नतीजा है हम दौड़ तो रहे हैं पर सबसे पीछे होते जा रहे हैं। महामारी का दौर ऐसा चला कि ना जाने कितने इस दौड़ में पीछे रह गए और न जाने कितने ज़िन्दगी की दौड़ में हार भी गए। जीतने वाले भी खुश नहीं हैं, क्योंकि जिस दौड़ में वह जीते तो पर कितना कुछ खो चुके इस बात के ग़म में हैं।

 

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आज हम उन्नति तो चाहते हैं पर मानवीय सद्गुणों के विकास का प्रयत्न नहीं करते। समाज में शान्ति और सम्पन्नता रहे यह सभी की इच्छा है पर इसके मूल आधार पारस्परिक प्रेम भाव की वृद्धि का उपाय नहीं करते।

बहरहाल मुद्दा यह है कि हमारे देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र का मतलब जनता का शासन। उसके बाद इसे चार स्तम्भ में विभाजित किया गया है।

लोकतंत्र में चार प्रमुख तत्व होते हैं

अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक Professor Larry Diamond के अनुसार, लोकतंत्र में चार प्रमुख तत्व होते हैं: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से सरकार को चुनने और बदलने के लिए एक राजनीतिक व्यवस्था, नागरिकों के रूप में राजनीति और नागरिक जीवन में लोगों की सक्रिय भागीदारी, सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा।

Professor Shri Kodi Rammurthy Naidu ने बताया कि लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं: (1) विधानमंडल; (2) कार्यपालिका; (3) न्यायपालिका; और (4) मीडिया,



सामान्य तौर पर, किसी भी दिए गए "लोकतंत्र के चार स्तंभ" आमतौर पर एक आधुनिक, रिपब्लिकन संविधान से प्राप्त होते हैं। सामान्य तौर पर इनका आदर्श जन प्रतिनिधित्व है।

इन चारों स्तम्भ की बात करें तो सभी स्तम्भ धराशायी होते दिख रहे हैं। जहां तक चौथे स्तम्भ की बात करें आज हमारे देश में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया इस वक़्त बुरे दौर से गुज़र रहा है।

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Justice (Retd) Markandey Katju के न‍िजी व‍िचार

सुप्रीम कोर्ट के Justice (Retd) Markandey Katju का कहना है कि अधिकांश Media तो बिकाऊ, बेशर्म, चाटुकार, गोदी मीडिया हो गई है। उसकी तो बात करना ही फ़िज़ूल है। लेकिन उस मीडिया के बारे में क्या कहा जाए जो अपने को स्वतंत्र कहती है? क्या वह भारत की जनता को वैचारिक नेतृत्व दे रही है, जो उसकी ज़िम्मेदारी है, ताकि एक उज्जवल भारत का निर्माण हो सके? कतई नहीं।

Media की मुख्य भूमिका होती है जनता को घटनाओं की सही जानकारी देना। इसके अलावा उसकी यह भी ज़िम्मेदारी होती है कि जनता को उज्जवल जीवन पाने की दिशा दिखाए और वैचारिक क्षेत्र में जनता को सही नेतृत्व प्रदान करे।

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Media एक शक्तिशाली उपकरण था

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से Media का उदय पश्चिमी यूरोप में 18वीं सदी में हुआ। उस समय सारे सत्ता के उपकरण सामंती शासकों (राजा, जमींदार और उनके नुमाइंदों) के हाथों में थी। इसलिए जनता को ऐसे उपकरणों का निर्माण करना पड़ा जो उनकी नुमाइंदगी कर सके और उनकी हितों की रक्षा कर सके। इन उपकरणों में मीडिया एक शक्तिशाली उपकरण था, जिसका बहुत प्रयोग यूरोप में हुआ। महान लेखक जैसे वोल्तेयर (Voltaire), रूसो (Rousseau), थॉमस पैन (Thomas Paine) आदि ने Media द्वारा (जो उस समय पर्चों, लघुपत्रों आदि के रूप में थी न कि दैनिक समाचार पत्रिकाओं के रूप में) सामंती व्यवस्था पर करारा प्रहार किया और आधुनिक समाज के निर्माण में बड़ा योगदान दिया।

कौन देश की बागडोर संभालेगा?

आज भारत बड़े संकट में है- भीषण ग़ुरबत, बेरोज़गारी, कुपोष, स्वास्थ लाभ और अच्छी शिक्षा का अभाव के शिकंजे में। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए मीडिया भी बड़ा योगदान कर सकती है और खुशहाल भारत के निर्माण में बड़ी मदद कर सकती है। जैसा कि 18वीं सदी की यूरोपी मीडिया ने किया, पर क्या वह ऐसा कर रही है?

मीड‍िया का एक वर्ग लगातार मोदी और बीजेपी की निंदा कर रहा है। मैं कोई बीजेपी या मोदी का समर्थक नहीं हूं, मगर मैं ऐसे मीड‍िया से सवाल करना चाहता हूं क‍ि क्या वे इस बात का ध्‍यान रख रहे हैं क‍ि मोदी और बीजेपी अगले चुनाव में हार गए तो कौन उनकी जगह देश की बागडोर संभालेगा?



कांग्रेस पार्टी? वह तो मां बेटे के अलावा कुछ नहीं है या फ‍िर विपक्षी पार्टियों की साझा सरकार? मगर ऐसी सरकार बनने पर (या उससे भी पहले) यह झगड़ा शुरू हो जाएगा कि मलाईदार मंत्रालय किस पार्टी को मिले। यानी इस बात पर झगड़े होंगे कि कौन लूट का बड़ा भागीदार होगा। सरकार बनने के बाद भी यही झगड़े होते चलेंगे। 1977 में आपातकाल ख़त्म होने के बाद जनता पार्टी केंद्र में सत्ता में आयी। यह वास्तव में कई पार्टियों की मिली जुली साझा सरकार थी। शीघ्र ही इस सरकार में आपसी झगडे शुरू हो गए और अंततोगत्वा इसका 1980 में पतन हो गया। यही हश्र होगा अगर फिर से साझा सरकार बनेगी।

स्‍वतंत्र मीड‍िया के नाम पर सत्तारूढ़ बीजेपी की आलोचना तक सीम‍ित रहने वाली मीड‍िया जनता को यह नहीं बताती कि मौलिक परिवर्तन के लिए राजनैतिक दल बदलने से कुछ न होगा, बल्कि सारी व्यवस्था ही बदलनी होगी। ऐसा करने के लिए एक महान एकजुट ऐतिहासिक क्रांतिकारी जनसंघर्ष करना होगा, जाति और धर्म की दीवारों को तोड़कर बड़ी क़ुर्बानियां देनी होंगी, और ऐसी राजनैतिक व्यवस्था का निर्माण करना होगा जिसके अंतर्गत तेज़ी से औद्योगीकरण हो और जनता को अच्छा जीवन मिले।

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Media क्या वास्तव में स्वतंत्र है

अलबत्ता हमारी तथाकथित ‘स्वतंत्र’ Media ऐसा कभी नहीं करती, बल्कि जो लोग इन विचारों को व्यक्त करना चाहते हैं उनके व‍िचारों को जगह भी नहीं देती। तो यह Media क्या वास्तव में स्वतंत्र है और क्या यह जनता के प्रति अपना दायित्व निभा रही है?

(लेखक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और प्रेस काउंस‍िल ऑफ इंड‍िया के पूर्व अध्‍यक्ष हैं। यहां व्‍यक्‍त व‍िचार उनके न‍िजी हैं।

 



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